मंगळवार, १३ सप्टेंबर, २०११

तलाश ए मोहोब्बत

धुन्दलेसे पन्नो पे जिन्दगीकी वो फसाने नहीं मिलते

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हसिनावोको अब सवरने के बहाने नहीं मिलते
मैफिलोमे आखोसे आखोके पैमाने नहीं मिलते

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सजना धजना कब का ठुकरा दिया है आयिनोने
शिकायत है की पहलेसे अब दीवाने नहीं मिलते

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पिणेवाले बहला लेते है खुद को शराब-ए-खाव्ब से
क्या करे साकी अब दीदार-ए-मैखाने नहीं मिलते

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चाँद सा चेहरा देखे एक जमाना कब का बीत गया
ईश्क के भीड़ में अब चेहरे जाने पहचाने नहीं मिलते

लिखा कुछ हाले-ए-दिल सुनाते थे मैफिलोमे कभी
धुन्दलेसे पन्नो पे जिन्दगीकी वो फसाने नहीं मिलते







तलाश ए मोहोब्बत
जो दफन इस जेहेन मे
हमदम, कभी आवाज न देना
छोड आये रुहतक तुम्हारी चमन मे

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